tag:blogger.com,1999:blog-21423440195241782252024-02-06T21:31:19.197-08:00VEDIC TOAPPARAM ARYAhttp://www.blogger.com/profile/07013544056473438992noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-2142344019524178225.post-30004838119890220362010-11-16T23:42:00.000-08:002010-11-16T23:48:18.429-08:00अब तुम्हारे हवाले 'मटन' साथियों<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4H_VLOT33kHynvS9GYKlLn5zbRegO5hWQfcNdNGhYOJO-a-uaCLMOuJwiDS6pi6lKWREv_50fn7Q9yT038M5e0fnOL0J0swsqKxw8y2UzOTILSshR-gEkZC6oISvrI_GE0cMtjo8Wv8H5/s1600/testicles.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5540422204067428850" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 400px; CURSOR: hand; HEIGHT: 300px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4H_VLOT33kHynvS9GYKlLn5zbRegO5hWQfcNdNGhYOJO-a-uaCLMOuJwiDS6pi6lKWREv_50fn7Q9yT038M5e0fnOL0J0swsqKxw8y2UzOTILSshR-gEkZC6oISvrI_GE0cMtjo8Wv8H5/s400/testicles.jpg" border="0" /></a> हमारे देश के आदमी ही नहीं बल्कि बकरे भी विचारक होते हैं .<br />उदहारण देखें -<br />एक बकरा किसी के हाथों काटने से पहले कौन सा गाना गायेगा ?<br />कर चले हम फ़िदा जन ओ तन साथियों<br />अब तुम्हारे हवाले 'मटन' साथियों<br />नोट ; आपके पास इसकी टक्कर की कोई वस्तु या रचना हो तो भेंट करें .PARAM ARYAhttp://www.blogger.com/profile/07013544056473438992noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2142344019524178225.post-26242364034585158292010-10-09T13:01:00.000-07:002010-10-09T13:06:47.321-07:00पादरी तेरे पे ज्ञान की आत्मा उतरती हो तो दे इसका जवाब - 'जब अद्वैत एक ईश्वर है तो ईसाईयों का तीन कहना सर्वथा मिथ्या है'<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAMKu3Y-H99b1XG7VGVQzmrL3cJErsVXqsSx5MbJVICN1548nl5IeS4qPjcxpwiLB0w7CI45gWdJZRE2OJc4qTkErDTbV0zb__AtzM406D24MDe9M7C3bsVv3bZoO1ShVFdd_GYeNKY0qE/s1600/sky.jpeg"><img style="float: right; margin: 0pt 0pt 10px 10px; cursor: pointer; width: 184px; height: 274px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAMKu3Y-H99b1XG7VGVQzmrL3cJErsVXqsSx5MbJVICN1548nl5IeS4qPjcxpwiLB0w7CI45gWdJZRE2OJc4qTkErDTbV0zb__AtzM406D24MDe9M7C3bsVv3bZoO1ShVFdd_GYeNKY0qE/s400/sky.jpeg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5526139883505982210" border="0" /></a><br /><span style="font-weight: bold;" id="TRN_118">९९</span><span style="font-weight: bold;">- जो अद्वैत सत्य ईश्वर है.- यो० प० १७, आ० ३</span><br />( समीक्षक ) जब अद्वैत एक ईश्वर है तो ईसाईयों का तीन कहना सर्वथा मिथ्या है . <span>॥</span> ९९ <span>॥</span><br />इसी प्रकार बहुत ठिकाने इंजील में अन्यथा बातें भरी हैं. सत्यार्थ प्रकाश पृष्ट ४१४, १३वां समुल्लास<br />परम विचार - यह देखो ऋषि का चमत्कार. इसे कहते हैं गागर में सागर. यह थोड़े से शब्द तेरी पूरी पोस्ट पे भारी हैं.<br />पादरी तूने क्या चखा है यह तेरे उत्तर से स्पष्ट हो जायेगा. तेरे पे ज्ञान की आत्मा उतरती हो तो दे इसका जवाब.PARAM ARYAhttp://www.blogger.com/profile/07013544056473438992noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2142344019524178225.post-19002348527677297322010-08-09T07:59:00.000-07:002010-08-09T08:07:22.006-07:00सच्चे शिव की खोज और ऋषि दयानंद<strong><span style="color:#990000;">महा दिव्य इक नेता (रचयिता ---श्री चिन्ता मणि वर्मा )</span></strong><br /><strong><span style="font-size:180%;color:#ff0000;"><span style="color:#993300;">सच्चे शिव की खोज करूँगा</span><br /></span></strong>फ़ैल रहा क्या ? फ़ैल चुका था ,भारत में अन्धेरा ।<br />भारत की जनता भटक रही थी तज अपनापन सारा ।।१ ।।<br />भूल रही थी , छोड़ रही थी ,वेद-धर्म की महत्ता ।<br />पाखंडों के बीच फंसी थी जब भारत की जनता ।।२ ।।<br />विधर्मियों का तो क्या कहना , थे बहकाते फुसलाते ।<br />नाना भांति कार्य में रत हो , धर्म- भ्रष्ट थे करते ।।३ ।।<br />ऐसे विकट समय में आया महा दिव्य इक नेता ।<br />दयानंद का जन्म हुआ , नवयुग चेतना प्रणेता।।४ ।।<br />शिवरात्रि की रात्रि में वह बना ज्ञान का प्यासा ।<br />सच्चे शिव की खोज करूँगा हुई एक जिज्ञासा ।।५ ।।<br />मुझको शिव दर्शन करना है कम से कम इक बार ।<br />यही सोच करके उसने छोड़ा था निज घरबार ।।६ ।।<br />जब सिद्धार्थ ने गृह त्यागा था ,तनिक न बाधा आई ।<br />पर इस बालक के आगे तो थी बाधा की खाई ।।७।।<br />बाधाओं से जूझ -जूझ कर ही आगे बढ़ पाया ।<br />सच्चे गुरु की खोज में था , वह दूर -दूर दौड़ा धाया ।।८ ।।<br />जो भी गुरुजन उसको मिलते , पाखंडी ही मिलते ।<br />महिमा वे पाखंडों की ही , उसको थे बतलाते ।।९ ।।<br />इसी भांति वे बहुत दिनों तक , इधर -उधर थे भटके ।<br />तभी पहुँच पाए वे आश्रम में प्रज्ञा- चक्षु के ।।१० ।।<br />गुरु विरजानंद से पाई, तब दयानंद ने दीक्षा ।<br />देशकाल की, जाति धर्म की, वेद ज्ञान की शिक्षा ।।११ ।।<br />भारत के घर -घर में फैले , फिर से धर्म महान ।<br />आर्य जाति को फिर से होवे , आर्य धर्म का ज्ञान ।।१२ ।।<br />विरजानन्द प्रज्ञा चक्षु की यह महान अभिलाषा ।<br />यह महान व्रत पूर्ण करेगा , थी दयानंद से आशा ।।१३ ।।<br />दयानंद ने निज जीवन को गुरु दक्षिणा दान दिया ।<br />उनकी हर इच्छा पूरी हो , यह भी गुरु को वचन दिया ।।१४ ।।<br />विधर्मियों के अभियानों का ,भारत से पाखंडों का ।<br />नाश करूँगा मैं भारत में फैले इस अंधियारे का ।।१५ ।।<br />दुनिया भर में अमर वेद का , मैं सन्देश अमर दूंगा ।<br />चाहे राह कंटीली कितनी हो , पर चले चलूँगा ।।१६ ।।<br />दयानंद ने गुरु दक्षिणा दी , यह ही निज गुरु को ।<br />गुरु दक्षिणा तो क्या उसने अर्पित की जीवन को ।।१७ ।।<br />लिए पताका हाथ धर्म की , पाखंडों के खंडन की ।<br />चले कुम्भ के मेले में , ले आश धर्म के जय की ।।१८ ।।<br />गरज -गरज कर पंडों को ,ढोंगी जन और धूर्तों को ।<br />डांट और फटकार दिया ,जनता को सन्मार्ग दिया ।।१९ ।।<br />भारत का काया पलट किया ,पाखंड दुर्ग को हिला दिया ।<br />विकृत धर्म का नाश किया ,आर्य धर्म का घोष किया ।।२० ।।<br />हरिद्वार से वे चलकर ,खंडन -मंडन करते डटकर ।<br />इक बार बात आई मन में ,मैं चलूँ विजय को काशी में ।।२१ ।।<br />काशी पहुंचे उदघोष किया ,पौराणिक दल का दलन किया ।<br />है अगर न तुमको धर्म- ज्ञान ,तो क्यों फैलाते हो अज्ञान ? २२ ।।<br />है यदि धर्म का ज्ञान तुझे ,है धर्म- ज्ञान अभिमान तुझे ।<br />तो आओ शास्त्रार्थ करें ,वेद- धर्म का मान करें ।।२३ ।।<br />काशी में शास्त्रार्थ किया ,उचित धर्म का रूप दिया ।<br />पर दुराग्रही लोगों ने ,पत्थर फेंके उन धूर्तों ने ।। २४ ।।<br />धर्म- भ्रष्ट करने वाले ,लोगों को बहकाने वाले ।<br />जितने भी कुविचारी थे ,नहीं कभी सुविचारी थे ।।२५ ।।<br />निज को कहते जो रक्षक थे ,पर सचमुच जो भक्षक थे ।<br />जो आर्य धर्म के बाधक थे ,जो आर्य जाति के नाशक थे ।।२६ ।।<br />उन्हें चुनौती कठिन दिया ,दुष्ट जनों का नाश किया ।<br />सब को शुभ सन्देश दिया ,आर्य धर्म का ज्ञान दिया ।।२७ ।।<br />ब्रह्मचर्य व्रत धारी ऋषि ने ,निर्भय बनने का पाठ दिया ।<br />आर्य जाति की उन्नति के हित , ऋषि ने अद्भुत कार्य किया ।।२८ ।।<br />स्त्री शिक्षा ,हिंदी भाषा , को अनिवार्य बताते थे ।<br />स्वतंत्रता का लाभ महर्षि, जनता को समझाते थे ।।२९ ।।<br />आर्य देश में गो हत्या तो आर्यों के ऊपर अभिशाप ।<br />गो हत्या को बंद करावें , नहीं कभी सह सकते पाप ।।३० ।।<br />ब्रह्मचर्य व्रत पालें सब ही , पढ़ें वेद को भी सब लोग ।<br />धर्म और देश का मिलकर , के उत्थान करें हम लोग ।।३१ ।।<br />वेद भाष्य को करके ऋषिवर ने , हर रहस्य को खोल दिया ।<br />फिर भी हर जन समझ -सुलभ ,सत्यार्थ प्रकाश प्रकाश किया ।।३२ ।।<br />इसी लोक हितकारी ऋषि को , दुष्टों ने विषपान दिया ।<br />फिर भी ऋषिवर ने स्वेच्छा से , उनको जीवन दान दिया ।।३३ ।।<br />अमर ज्योति वह आर्य जाति को , बतलाकर के राह सही ।<br />दीपावलि के सांध्यकाल में ,देह त्याग कर मुक्त हुई ।।३४ ।।<br />ऋषिवर के हर कार्यों को ही , हमें बढ़ाना है आगे ।<br />आर्य संस्कृति -धर्म -सभ्यता ,के हित सदा रहें जागे ।।३५ ।।PARAM ARYAhttp://www.blogger.com/profile/07013544056473438992noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2142344019524178225.post-37279442263030399752010-07-27T05:22:00.000-07:002010-07-27T11:38:03.996-07:00शिवलिंग और पार्वतीभग की पूजा की उत्पत्ति पुराणों में<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0rVoTIQUWgCuQuD47KwAM_igcsb8sk5DagqBBhyphenhyphenDO-wOW0KmfzX7mNIAzahwfPOJIEfyrIehUybiDR6VIiWiF_7xJtnKHSjuqiDPjaKERWWCReCa4pJYIJeeOyQ3BkDMMqyJj5Xv_Cd7n/s1600/rajasthan_tantric_shivlinga_20070528.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5498566421146069474" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 400px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0rVoTIQUWgCuQuD47KwAM_igcsb8sk5DagqBBhyphenhyphenDO-wOW0KmfzX7mNIAzahwfPOJIEfyrIehUybiDR6VIiWiF_7xJtnKHSjuqiDPjaKERWWCReCa4pJYIJeeOyQ3BkDMMqyJj5Xv_Cd7n/s400/rajasthan_tantric_shivlinga_20070528.jpg" border="0" /></a> <span style="font-size:130%;"><span style="color:#cc0000;">शिवलिंग और पार्वतीभग</span> की पूजा की उत्पत्ति पुराणों में</span> <div>इसकी उत्पत्ति की कथाएं विभिन्न स्थानों पर विभिन्न रूपों में लिखी हुई मिलती हैं , देखिये हम यहां कुछ उदाहरण उन पुराणों से पेश करते हैं , यथा</div><div>1- दारू नाम का एक वन था , वहां के निवासियों की स्त्रियां उस वन में लकड़ी लेने गईं , महादेव शंकर जी नंगे कामियों की भांति वहां उन स्त्रियों के पास पहुंच गये ।यह देखकर कुछ स्त्रियां व्याकुल हो अपने-अपने आश्रमों में वापिस लौट आईं , परन्तु कुछ स्त्रियां उन्हें आलिंगन करने लगीं ।उसी समय वहां ऋषि लोग आ गये , महादेव जी को नंगी स्थिति में देखकर कहने लगे कि -‘‘हे वेद मार्ग को लुप्त करने वाले तुम इस वेद विरूद्ध काम को क्यों करते हो ?‘‘यह सुन शिवजी ने कुछ न कहा , तब ऋषियों ने उन्हें श्राप दे दिया कि - ‘‘तुम्हारा यह लिंग कटकर पृथ्वी पर गिर पड़े‘‘उनके ऐसा कहते ही शिवजी का लिंग कट कर भूमि पर गिर पड़ा और आगे खड़ा हो अग्नि के समान जलने लगा , वह पृथ्वी पर जहां कहीं भी जाता जलता ही जाता था जिसके कारण सम्पूर्ण आकाश , पाताल और स्वर्गलोक में त्राहिमाम् मच गया , यह देख ऋषियों को बहुत दुख हुआ । इस स्थिति से निपटने के लिए ऋषि लोग ब्रह्मा जी के पास गये , उन्हें नमस्ते कर सब वृतान्त कहा , तब - ब्रह्मा जी ने कहा - आप लोग शिव के पास जाइये , शिवजी ने इन ऋषियों को अपनी शरण में आता हुआ देखकर बोले - हे ऋषि लोगों ! आप लोग पार्वती जी की शरण में जाइये । इस ज्योतिर्लिंग को पार्वती के सिवाय अन्य कोई धारण नहीं कर सकता । यह सुनकर ऋषियों ने पार्वती की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया , तब पार्वती ने उन ऋषियों की आराधना से प्रसन्न होकर उस ज्योतिर्लिंग को अपनी योनि में धारण किया । तभी से ज्योतिर्लिंग पूजा तीनों लोकों में प्रसिद्ध हुई तथा उसी समय से शिवलिंग व पार्वतीभग की प्रतिमा या मूर्ति का प्रचलन इस संसार में पूजा के रूप में प्रचलित हुआ । - ठाकुर प्रेस शिव पुराण चतुर्थ कोटि रूद्र संहिता अध्याय 12 पृष्ठ 511 से 513<br />2- शिवजी दारू वन में नग्न ही घूम रहे थे , वहां के ऋषियों ने अपनी-अपनी कुटियाओं को पत्नी विहीन देखकर शिवजी से कहा - आपने इन हमारी पत्नियों का अपहरण क्यों किया ? इस पर शिवजी मौन धारण किये रहे , तब ऋषियों ने उनके लिंग को खण्डित होने का श्राप दे डाला , जिससे उनका लिंग कटकर भूमि पर आ पड़ा और अत्यन्त तेजी से सातों पाताल और अंतरिक्ष की ओर बढ़ने लगा , क्षण भर में देखते ही देखते सारा आकाश और पाताल लिंगमय हो गया । - साधना प्रेस स्कन्द पुराण पृष्ठ 15<br />3- <span style="font-size:130%;color:#ff0000;">शिवजी एकदम नंग धड़ंग रूप में ही भिक्षा मांगने के लिए ऋषियों के आश्रम में चले गये , वहां उनके इस देवेश्वर रूप को देखकर ऋषि पत्नियां उन पर मोहित हो गईं और उनकी जंघाओं से लिपट गईं ।यह दृश्य देख ऋषियों ने शिवजी के लिंग पर काष्ठ और पत्थरों से प्रहार किया , लिंग के पतित हो जाने पर शिवजी कैलाश पर्वत पर चले गये ।</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;color:#ff0000;"></span>- <strong><span style="color:#cc0000;">वामनपुराण खण्ड</span></strong> 1 श्लोक 58,68,70,72,पृष्ठ 412 से 413 तक<br />4- सूत जी ने बताया कि दारू नाम के वन में मुनि लोग तपस्या कर रहे थे , शिवजी नग्न हो वहां पहुंच गये और कामदेव को पैदा करने वाले मुस्कान-गान कर नारियों में कामवासना वृद्धि कर दी ।यहां तक कि वृद्ध महिलाएं भी भूविलास करने लगीं , अपनी पत्नियों को ऐसा करते देख मुनियों ने शिव को कठोर वचन कहे । - डायमंड प्रेस , लिंग पुराण पृष्ठ 43<br /><strong><span style="color:#993300;">शिवजी की उत्पत्ति</span></strong> </div><br /><div>1- शिवजी स्वयं उत्पन्न हुए । - गीता प्रेस शिवपुराण विन्धयेश्वर संहिता पृष्ठ 57 2- शिवजी , विष्णु जी की नासिका के मध्य से उत्पन्न हुए । - ठाकुर प्रेस शिव पुराण द्वितीय रूद्र संहिता अध्याय 15 पृष्ठ 126 3- शिव का जन्म विष्णु के शिर से माना जाता है । - डायमंड प्रेस ब्रह्म पुराण पृष्ठ 1414- शिवजी ब्रह्मा के आंसुओं से प्रकट हुए । - डायमंड प्रेस कूर्म पुराण पृष्ठ 26औघड़ मत का पूजा विधान औघड़ मत में भैरवी चक्र नाम का एक पर्व होता है , जिसमें एक पुरूष को नंगा करके उसके लिंग की स्त्रियां पूजा करती हैं और दूसरे स्थान पर एक स्त्री को नंगा खड़ा कर पुरूषों द्वारा उसकी भग अर्थात योनि की पूजा की जाती है । - सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 11 , पृष्ठ 192 , डिमाई साईज़ @ डायमंड प्रेस , अग्नि पुराण , पृष्ठ 41</div><br /><div><span style="font-size:130%;color:#993300;">शिवजी ओघड़ थे</span></div><div>1- ब्रह्मा जी शिवजी के पास गये और बोले - ‘‘हे ओघड़‘‘ । - साधना प्रेस हरिवंश पुराण पृष्ठ 140 2- सूत जी ने कहा - शंकर जी ‘‘ओघड़‘‘ हैं ।- डायमंड प्रेस ब्रह्माण्ड पुराण पृष्ठ 39/साधना प्रेस स्कन्ध पुराण पृष्ठ 19 शिवजी का भेष 1- मुण्डों की माला धारण करते हैं । - पद्म पुराण , खण्ड 1 , श्लोक 179 , पृष्ठ 324 शिवजी का निवास 1- शिवजी श्मशान घाट में रहते हैं । - डायमंड प्रेस वाराह पुराण पृष्ठ 160शिवजी का आहार 1- शिवजी कहते हैं कि - ‘‘मैं हज़ारों घड़े शराब , सैकड़ों प्रकार के मांस से भी - <span style="color:#cc0000;"><strong>‘‘लिंग-भगामृत‘‘ के बिना सन्तुष्ट नहीं होता‘</strong></span>‘ । - वेंकेटेश्वर प्रेस कुलार्णव तन्त्र उल्लास पृष्ठ 472- शिव जी अभक्ष्य पदार्थों का भक्षण करते हैं । - ठाकुर प्रेस शिव पुराण तृतीय पार्वती खण्ड अध्याय 27 पृष्ठ 235</div><div><span style="font-size:130%;color:#993300;">शिवलिंग पर चढ़ाई गई वस्तुओं का निषेध</span> </div><div>1- सभी लोग लिंग पर चढ़ाई गई वस्तुओं का निषेध करते हैं । -गीता प्रेस ,शिव पुराण , पृष्ठ 69, श्लोक 142- शिवलिंग पर चढ़ाई गई वस्तुएं ग्रहण करना शास्त्र सम्मत नहीं है । 3- शिव जी को आहुति देने वाले अपवित्र हो जाएंगे । -डायमंड प्रेस , ब्रह्माण्ड पुराण , पृष्ठ 22 , श्लोक 110<br /><span style="font-size:130%;">शिवजी के सम्बंध में पुराणों की बातें</span> </div><div>1- शिव लोक की कल्पना करना अज्ञानी और मूढ़ पुरूषों का काम है । -कला प्रेस , सर्व सिद्धान्त संग्रह, पृष्ठ 132- जो लोग शिव को संसार की रक्षा करने वाला मानते हैं , वे कुछ भी नहीं जानते हैं । -देवी भागवत पुराण, खण्ड 1, श्लोक 6, पृष्ठ 133- </div><div>जैसे कलि युग का प्रचार होगा वैसे ही शिव मत का प्रचार बढ़ेगा । -सूर्य पुराण, श्लोक 54, पृष्ठ 162<br />शिवजी सन्ध्या करते थे सूत जी बोले - शिव जी सन्ध्या करते हैं । -पद्म पुराण खण्ड 1, श्लोक 201, पृष्ठ 328 </div><div>शिवाजी की पत्नी का नाम ‘पार्वती‘ है । -ठाकुर प्रेस,शिव पुराण , तृतीय पार्वती खण्ड , अध्याय 5 , पृष्ठ 275<br /><span style="font-size:130%;color:#ff0000;">पार्वती के अनेक नाम</span> </div><div>काली , कालिका , कामाख्या , भद्रकाली , उमा , भगवती , अम्बा , चण्डिका , चामुण्डा , विजया , मुण्डा , जया , जयन्ती , आदि ‘पार्वती‘ के ही नाम हैं । -ठाकुर प्रेस, शिव पुराण, द्वितीय, रूद्र संहिता, पृष्ठ 128 काली की उत्पत्ति 1- रूद्र की जटा से काली उत्पन्न हो गई । -गीता प्रेस,शिव पुराण,रूद्र संहिता, पृष्ठ 1512- नारायण की हड्डियों से काली उत्पन्न हो गई । -डायमण्ड प्रेस मार्कण्डेय पुराण पृष्ठ 108</div><div><span style="font-size:130%;color:#990000;">काली का आहार</span></div><div><strong><span style="color:#ff0000;">1- काली सैकडों-लक्ष अर्थात लाखों हाथियों को मुख में रखकर चबाने लगी ।</span></strong> -ठाकुर प्रेस, शिव पुराण पंचम युद्ध खण्ड अध्याय 37 पृष्ठ 3712- अम्बिका मदिरा अर्थात शराब पीती थी । -संस्कृति संस्थान , वामन पुराण , खण्ड 12 , ‘लोक 37 , पृष्ठ 2503- काली की जीभ से कन्या पैदा हो गई । -देवी भागवत , खण्ड 2, ‘लोक 36, पृष्ठ 248‘शिवलिंग और पार्वतीभगपूजा ?‘ का एक अंश लेखक : सत्यान्वेषी नारायण मुनि , स्थान व पोस्ट - सिकटा जिला - पश्चिमी चम्पारण , बिहार प्रकाशक : अमर स्वामी प्रकाशन विभाग , 1058 विवेकानन्द नगर , गाजियाबाद - 201001 मूल्य : 5 रूपये मात्र</div><strong><blockquote><ul><li><div align="justify">यह चित्र निम्न साइट से साभार उद्धृत है -</div></li><li><div align="justify"><a href="http://www.outlookindia.com/images/rajasthan_tantric_shivlinga_20070528.jpg">http://www.outlookindia.com/images/rajasthan_tantric_shivlinga_20070528.jpg</a> </div></li></ul></blockquote></strong><span style="color:#cc0000;"></span>PARAM ARYAhttp://www.blogger.com/profile/07013544056473438992noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2142344019524178225.post-10109500725644983302010-07-26T08:50:00.000-07:002010-07-26T09:00:15.124-07:00ज्ञान मिलेगा वेद से और वेद का केवल वही अर्थ सही है जो महर्षि ने किया है .ज्ञान के लिए धैर्य चाहिए और आज की पीढ़ी अधीर है , हर काम में जल्दी करती है . इसलिए इसे वास्तविक ज्ञान मिलना कठिन है . इसी कारण आज भारत में विभिन्न मत मतान्तरों की बाढ़ आई हुई है . ज्ञान मिलेगा वेद से और वेद का केवल वही अर्थ सही है जो महर्षि ने किया है .<br />भ्रम फैलाने वालों में से एक नाम काम्दर्शी का है . आज वह कई ब्लोग्स पर निम्न बातें कहता फिरा . सबसे ज्यादा गंद उसने फैलाई है<br />bhandafodu.blogspt.com<br /><br />vedquran.blospot.com<br /><br />hamarianjuman.blogspot.com<br /><br />blog4varta.blogspot.com<br />पर . इससे सावधान रहना हरेक ब्लोगेर का कर्तव्य है .<br />इसने कहा<br />हमारा भारत महान है क्योंकि यहाँ उस चीज़ की पूजा होती है जिस पर पुरुष की महानता टिकी होती है .<br />ज़ीशान जैदी ! ज्ञान लिंग से प्रकट होता है , भाषाएँ तो बहुत हैं और अक्षर भी परन्तु सब में प्यार करने के लिए ही कहा गया है और प्यार होता है लिंग से . भारतवासियों ने लिंग की शक्ति और महिमा सबसे पहले पहचानी है . मुसलमानों को भी पीछे छोड़ दिया . कोई इस सत्य से इंकार नहीं कर सकता . <br />वैज्ञानिक जी ! लिंग योनि या औरत मर्द कोमन नाम हैं इन्हें कोई भी रख सकता है .<br /><p>सबसे बड़ा आधार है लिंग और योनि , इसी से जीवन चलता है . क्यों ?</p><p>हमारा भारत महान है क्योंकि यहाँ उस चीज़ की पूजा होती है जिस पर पुरुष की महानता टिकी होती है .</p><p><span style="color:#cc6600;"><span style="font-size:130%;">मैंने कहा </span></span></p><p><span style="font-size:130%;"><span style="color:#993300;">बेटा कामदर्शी ! ये ज्ञान तुझे आर्य समाज के शोध पत्र से मिला है . बन्दर को मिल गयी हल्दी की गाँठ और वह खुद पंसारी समझने लगा . तू और अनवर एक जैसे हो . मेरे ब्लॉग पर आ, ज्ञान तुझे वहां मिलेगा .</span></span><span style="color:#cc6600;"><span style="font-size:130%;"> <br /><br /><br /></span></span></p>PARAM ARYAhttp://www.blogger.com/profile/07013544056473438992noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2142344019524178225.post-42217699919767744332010-06-02T10:38:00.000-07:002010-06-02T10:42:59.737-07:00सौभाग्य पाने का सिद्धान्त<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-qTE4j2zsp5NzwGKQH-dcN3Qp8cZo1YsQWco5GupX2cdyvTWdVrrJ4oe4HnT5YGJupUCpWL8Z7MsCjFqdh8_rwxw-xL_9soJMLMxq8O-bM5EAprxyShYy7d6LM_Fm5FzaDXEVUNes7EUe/s1600/satyarth.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5478233160750845538" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 87px; CURSOR: hand; HEIGHT: 118px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-qTE4j2zsp5NzwGKQH-dcN3Qp8cZo1YsQWco5GupX2cdyvTWdVrrJ4oe4HnT5YGJupUCpWL8Z7MsCjFqdh8_rwxw-xL_9soJMLMxq8O-bM5EAprxyShYy7d6LM_Fm5FzaDXEVUNes7EUe/s320/satyarth.jpg" border="0" /></a><br /><div><span style="font-size:130%;color:#ff0000;">सर्वेषामेव दानानां ब्रह्मदानं विशिष्यते ।</span></div><br /><div><span style="color:#ff0000;"><span style="font-size:130%;">वार्यन्नगोमहीवासस्लिकाञ्चनसर्पिषामफ ।। <span style="color:#000099;">मनु.</span> ।।</span></span></div><br /><div>संसार में जितने दान हैं अर्थात जल , अन्न , गौ , पृथिवी , वस्त्र , तिल , सुवर्ण और घृतादि इन सब दानों से वेदविद्या का दान अतिश्रेष्ठ है । इसलिये जितना बन सके उतना प्रयत्न तन , मन , धन से विद्या की वृद्धि में किया करें । जिस देश में यथायोग्य ब्रह्मचर्य विद्या और वेदोक्त धर्म का प्रचार होता है वही देश सौभाग्यवान होता है । सत्यार्थ प्रकाश , तृतीयसमुल्लासउद्गार - आज यह राष्ट्र जिन कठिन परिस्थितियों में घिरा हुआ है उसका एकमात्र कारण वेदों की फलदायिनी और मुक्तिदायिनी शिक्षाओं की अनदेखी करना है । वेदों में विश्वास व्यक्त करने वाली जनता ने भी वेदमार्ग को अपने जीवन में प्रत्यक्ष करने का क्या प्रयास किया ?या अब ही क्या प्रयास कर रही है ? सौभाग्य की कुंजी वेदों में निहित है लेकिन कोई माने तब न । ऋषि दयानन्द सरस्वती ने जगत के कल्याण हेतु वेदमार्ग का ही सर्वत्र प्रचार किया परन्तु खेद का विषय है कि अधिकतर के लिए वेद आज तक रहस्य ही हैं । एक सूत्र भी कल्याण के लिए पर्याप्त है यदि उसे समर्पित भाव से सुना व ग्रहण किया जाए ।अपने कल्याण के लिए , राष्ट्र के उत्थान के लिए वेदमार्ग अपनाइये । </div>PARAM ARYAhttp://www.blogger.com/profile/07013544056473438992noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2142344019524178225.post-59731717195733064822010-05-25T08:21:00.000-07:002010-05-25T08:23:54.005-07:00आर्य समाज संगठन अपने उद्देश्यों से भटक गया है.<a href="http://nukkadh.blogspot.com/2010/05/blog-post_6948.html">(उपदेश सक्सेना)</a><br />अपनी स्थापना के १३५ साल बाद आर्य समाज संगठन अपने उद्देश्यों से भटक गया लगता है. 10 अप्रैल 1875 को जब बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज का गठन किया था तब उसका मुख्य उद्देश्य वेदिक संस्कृति को मानने वाले ऐसे लोगों का समूह बनाना था जो सामाजिक बुराइयों के खिलाफ़ लड़ सकें. इसके कामकाज में गुरुकुल-स्कूलों का संचालन, शुद्धि सभाएं करना आदि थे, इसे Society of Noble people का नाम दिया गया था. अब आर्य समाज ने अपनी भूमिका केवल प्रेम विवाह करवाने वाली संस्थान तक सीमित कर ली है. देश भर में चल रहे आर्य समाज मंदिरों में आज सामाजिक बुराइयाँ मिटाने से ज़्यादा जातीय-अंतरजातीय विवाह करवाए जाते हैं, यह ज़मीनी हकीकत है, इससे कई लोगों को ख़ासा बुरा भी लग सकता है. आंकड़े गवाह हैं कि पिछले कुछ दशकों में देश में हुए अधिकाँश विवाह इन आर्य समाज मंदिरों में हुए हैं. इन तथ्यों की तस्दीक की है हरियाणा के आर्य समाज ने. वहाँ आर्य समाज के एक धड़े ने माता-पिता और गांव वालों की अनुमति के बिना समाज के मंदिरों में होने वाली शादियों पर रोक लगाने का फैसला किया है। सभा के प्रतिनिधि के अनुसार “हम एक ही गोत्र और गांव में शादी की अनुमति नहीं दे सकते। समाज के कायदे-कानून का उल्लंघन करने वाली शादियों को भी स्वीकृति नहीं देंगे।“ अपनी सफाई में सभा के प्रतिनिधि की ओर से यह भी कहा गया है कि वे अंतरजातीय विवाह का विरोध नहीं करते, लेकिन भविष्य में शादी करने वाले जोड़ों को मंदिरों में अपने माता-पिता और गणमान्य लोगों के साथ आना होगा। उनके मुताबिक प्रेम विवाह हितकर नहीं है क्योंकि ऐसी शादियों में युवा सिर्फ सुंदरता देखते हैं।वे शादी के आधार की प्रकृति और गुणों को नहीं देखते। इस लंबे चौड़े स्पष्टीकरण में आगे कहा गया है कि भावी संतान को सुसंकृत करने के लिए सोलह संस्कारों का आदेश है. चाहे किसी भी विकृत अवस्था मे हो सम्पूर्ण भारत वर्ष के हिंदु समाज मे इन संस्कारों का किसी न किसी रूप मे पालन किया जाता रहा है. सब का नही तो कुछ महत्वपूर्ण संस्कारों का प्रचलन तो है ही, यही भावनाएं यम और नियम भी हमे याद कराती हैं. एक हिंदु का सामाजिक व्यवहार विश्व के सब लोगों से पृथक इन्ही भावनाओं के कारण होता है. जिन मे से विकृतियों के कारण कुछ हमारे समाज के लिए एक अभिशाप भी सिद्ध हो रहे हैं. हरियाणा और कुछ अन्य जगहों की खाप पंचायतों द्वारा पिछले लंबे समय से सगोत्र विवाह करने वालों को हिंसक दंड दिए जाने की घटनाएं बढ़ गई हैं. इस समानांतर क़ानून व्यवस्था को कतई जायज़ नहीं कहा जा सकता, हालांकि यह लंबी बहस का मुद्दा हो सकता है कि एक ही जाति में विवाह करना कितना बड़ा ज़ुर्म है, लेकिन इसकी आड़ में होने वाली हत्याएं भी किसी क़ीमत पर जायज़ कैसे कही जा सकती हैं. वेदिक तकनीक और मनु की आचार-संहिता का पालन हो अथवा वेदिक संस्कृति की पुनर्स्थापना यह तभी संभव होंगे जब इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए गठित आर्य समाज जैसी संस्थाएं अपनी लीक से हटकर काम न करें.......देश तो वैसे भी रसातल में जा रहा है.<br /><a href="http://nukkadh.blogspot.com/2010/05/blog-post_6948.html">http://nukkadh.blogspot.com/2010/05/blog-post_6948.html</a>PARAM ARYAhttp://www.blogger.com/profile/07013544056473438992noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2142344019524178225.post-87638451379409300672010-03-08T07:26:00.000-08:002010-03-08T07:30:59.922-08:00अद्भुत साहस और प्रतिभा की धनी है तसलीमा नसरीन<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-T9gT5PWJYVSydSkjoye99_9xz2Mw3ss47quQrmsuM2PPzVhM_TefTkkBuyVwbsPvMKZl2XBLbDJfTQIvuXRwywIiPd0atrbJXPuRdympeNIK7yu3d46qX0LZYroD9sjQ_svmAY5rl74g/s1600-h/taslima+news+cutting+1.jpg"><span style="color:#ff6600;"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5446285781831024642" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 233px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-T9gT5PWJYVSydSkjoye99_9xz2Mw3ss47quQrmsuM2PPzVhM_TefTkkBuyVwbsPvMKZl2XBLbDJfTQIvuXRwywIiPd0atrbJXPuRdympeNIK7yu3d46qX0LZYroD9sjQ_svmAY5rl74g/s320/taslima+news+cutting+1.jpg" border="0" /></span></a><span style="color:#ff6600;"><br /></span><div><span style="color:#ff6600;">मुल्लाओं का बैण्ड बजाने वाली औरतों की सिरमौर है तसलीमा नसरीन ।</span></div><br /><div><span style="color:#ff6600;">मुसलमानों तुम से तुम्हारा लहू पुकार पुकार कर तुम्हारे अत्याचार का हिसाब मांग रहा है । आओ हिसाब दो । कहां बिल में छिप गये चूहो ?</span></div><br /><div><span style="color:#ff6600;">आ बेटा मेरा ब्लाग देख और ...</span></div>PARAM ARYAhttp://www.blogger.com/profile/07013544056473438992noreply@blogger.com